Tuesday, November 10, 2009

kahan tak ye man ko ---

बातों बातों में -

कहाँ तक यह मन को
अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
...
कभी सुख कभी दुःख
यही जिंदगी है
यह पतझड़ का मौसम
घड़ी दो घड़ी है
नए फूल कल फिर
डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
भला तेज कितना हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में तू
रख यह भरोसा
जो बिछडे सफर में
तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

कहे कोई कुछ भी
मगर सच यही है
लहर प्यार की जो
कहीं उठ रही है
उसे एक दिन तो किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
कहाँ तक ते मन को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

अभय शर्मा
http://www.youtube.com/watch?v=4TIfCdc0HJs

No comments:

Post a Comment